रविवार की शाम

रविवार की शाम
वो रविवार की शाम भी
मुझपे बड़ा जुल्म ढाती थी
जो शूट मे कहर ढाती हो,
वो जीन्स टॉप पहन कर आती थी।
टीचर की नजरों से बचना भी होता था,
पर चोरी से नजरे छुपा के
उसे तकना भी होता था।
शृंगार उसका तब जानलेवा हो जाता था
जब उसके गालो पर
डिम्पल वाली मुस्कान आती थी।
नैनो से नैन मिलने का दौर होता था,
‘भाई भाभी को देख’ वाला शोर होता था।
उसके सौन्दर्य दर्शन मे
दिल खो जाता था,
मानो कल सुबह तक के इन्तजार
की दवा दे जाता था।
फिर वो अद्भुत घड़ी आती थी,
और इसी बीच प्रेयर खत्म हो जाती थी।
पर मुहब्बतों का सिलसिला
यही नही रुकना था
आखिरी बार उसे होस्टल की तरफ
जाते देखना था।
फिर इन्तजार ए शाम
का एक और पल था
शाम गुजार दी उसके ही ख्यालो मे,
अब मिलना उस से कल था।
वो रविवार की शाम ही ऐसी थी,
उसकी कई कहानी थी…..
यही वजह थी, कि
हम ही नही पूरा नवोदय
उस शाम का दिवाना था ।
– सचिन वर्मा

सचिन वर्मा
JNV Chatra , Jharkhand
Batch:- 2010 – 2017
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Photo by Paweł Czerwiński on UnsplashTags
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