मैं कौन? तुम्हारा बैंच!

मैं कौन? तुम्हारा बैंच!
मैं बोल रहा हूँ !
मैं कौन ?
भुल गये ना तुम !
स्कूल याद है तुम्हें ,
क्लासरुम भी याद होगा
मगर मुझे भुल गये..!
स्कूल का अधिकतम समय
तुमने मेरे साथ ही गुज़ारा
और मुझे ही भुल गये ?
क्या भुल गये,
जब एक कक्षा पास होकर
अगली कक्षा में जाते थे
तो मुझे भी साथ ले जाते
या पूरी कोशिश करते
कि मेरे जैसा ही कोई मिले ।
तुम भुल गये कैसे मेरी गोद में
सिर रखकर सोया करते थे तुम ,
या निराशा में झुका लेते थे
अपना सिर मेरे उपर,
देखे हैं मैंने तुम्हारे छुपे हुए आंसू
जो कभी मेरे किनारों से
पोछ लेते थे तुम ।
हमेशा ही गवाह रहा हूँ मैं
कि तुमने कितना चाहा है उसे ,
तुम्हारी हर कॉपी के कितने ही
पन्नों में उभरता हुआ उसका नाम ,
जो मेरे रंग की परतों में
अब भी दबा है वैसे ही,
वो दिल जो उकेरा था
तुमनें अपने डीवाइडर से ।
मेरे असंतुलित होने पर
कैसे कागजों के सहारे
तुम मुझे संतुलित कर देते
कि हम आराम से लम्बा समय
साथ बिता सकते है
मैं तुम और वो जगह जहाँ
हम हमेशा जमे रहते ।
देखी है मैंने तुम्हारी बेचैनी ,
जब तुम कभी मुझे नही पाते
और झगड़ा तक कर लेते मेरे लिये ।
मगर याद है मुझे वो आखिरी दिन
जब हम साथ थे ,
12वीं बोर्ड की परीक्षा के लिये
मैं एम.पी. हॉल में था ।
तुम फिर भी नहीं मिले मुझसे
मुझे लगा तुम आओगे ,
आखिरी बार अलविदा कहने ,
मुझे आंख भर देखने
जैसे तुमने कैपंस की हर चीज़ देखी ।
मगर तुम नहीं आये ।
अब कभी लौटो तो क्या पहचान लोगे मुझे ?
– अरिहंत जैन

अरिहंत जैन
Alumni Of JNV Multhan, M.P.
Batch:- 2003-2010
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Photo by Haseeb Modi on Unsplash Photo by Paweł Czerwiński on UnsplashTags
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