नवोदय का आखिरी दिन

नवोदय का आखिरी दिन
उस दिन
कई शक्लें दिखी
कुछ उदास आंखे
और कुछ मौन होंठ
हालांकि कुछ ने कोशिश की
सिले होंठो को खोलने की
लेकिन…
वो स्नेह और करुणा के अलावा कुछ न दें सके !
उस समय मेरे पाँव चाहते थे…की जम जाए
या फिर से दौड़े उस मॉर्निंग पी.टी. मे
या भागे…असेंबली मे लेट होते हुए
फिर से कूदे दिवार
मेरे हाथ अब भी चाहत मे थे
संडे को मिलकर कपडे धोने की
और निगाहें रख लेना चाहती थी
सहेज कर
बिल्डिगें, पानी की टंकी
और सबसे यादगार… हाउस का स्टोर
और मै इन सब को
यादो की पोटली मे सहेजता हुआ
घर छोड़कर मंजिल की तरफ बढ़ रहा था
– अजय कुमार

Ajay Kumar
JNV Delhi-2 (Jaffarpur Kalan)
Batch:- 2012-2019
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